Page 41 - Ezine September - 13
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शुरू क 1 दकलोमीटर तक माल्टा ,पहाड़ी दनम्बू और अन्य फल § फू ल क पेड़ दमलते रहे~ खेतो म गोभी,
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मटर~ राजमा लगे थ और मदहलाय काम करते हुए दिखाई पड़ती थी, कु छ लोग पशुओ क दलए जंगल से पीठ
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पर पदत्तया लािे हुए आ रहे थ, छोटी उम्र की लड़दकया गायों को हांक कर जगल की तरफ ल जा रही थी,
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यही सब पहाड़ी जनजीिन िेखत हुए हम अचानक खले खेतो से कब जंगल
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म प्रिेश कर गए पता ही नहीं चला
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कु छ ही मीटर चलने पर हमने एक िने जंगल म प्रिेश दकया चारो तरफ बााँझ, बुरांश ,बांस क पेड़ थ ,जंगल
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िना होने क कारण उमस भी चरम पर थी ,ऊं चाई चढ़ने क कारण हााँफ तो पहले से ही रहे थ ,अब जल्दी ही
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पसीने से भी तर बतर हो गए थोड़ा आगे चलने पर एक अधेड़ कच्ची सी झोपडी क बहार खड़े दमले ,हम भी
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िही पसर गए, िही चाय,पराठे खाये और उनसे बतके सिाल करते रहे - यहााँ जानिर आते है ? अभी दकतना
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ि ू र है ?शाम तक पहुाँच जायगे ?
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लगभग 3 दकलोमीटर क बाि हम पुग बुग्याल पहुंच | यही पहला पड़ाि है, यहााँ से ही सामने पहाड़ की चोटी
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पर प्रदसद्ध पनार बुग्याल पर पीला झंडा लहराता दिखता है |
कु छ िेर आराम क बाि हम दफर चल पड़े, पूरा रास्ता सुनसान जंगल स था, बहुत कम लोग आते -जाते नज़र
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आ रहे थ | रुकते थकते आस्खर शाम 3 बजे हम पनार बुग्याल पहुंच ही गए |अकल्पनीय सिरता ,चारों
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तरफ जंगल क बीच म एक दिशाल िास का मिान और सामने बफग से लिी दहमालय की चोदटया।
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यह जगह हमें इतनी पसंि आई की हमन आगे जाने का दिचार ही त्याग दिया, सामने ही िन दिभाग
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(anti - poaching hut) की एक झोपडी दिखाई िी, नज़िीक पहुंचत ही 2 भोदटया कु त्तो ने हमारा स्वागत
दकया | सामान रख, हम िापस बुग्याल म आ कर बैठ गए,थोड़ी िेर म राहुल नाम का लड़का हमार दलए
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चाय ल आया, राहुल से काफी िेर हम बात करते रहे और बुग्याल म ि ू र ि ू र तक उसी क साथ
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िूमत भी रहे |
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उसके चाचा यहााँ ये छानी चलाते है और दकसी तरह का दशकार यहााँ न हो इसका भी ध्यान रखत है |राहुल
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छु दियों म अपने चाचा की सहायता करने आया है, राहुल क अनुसार आज और यात्री आने मुस्िल हैं,
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हम शाम तक युही बुग्याल म िूमत रहे, सूरज की दकरण अब बफग लिी चोदटयों पर पड़ रही थी, पीली दसि ू री,
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नारंगी, लाल, सनहेरी चोदटयों का पल -पल रंग बिल रहा था|
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अब ठं ड काफी बढ़ चकी थी, बुग्याल म बैठना अब काफी मुस्िल हो रहा था, और अाँधरा भी
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होने लगा था | अब हम राहुल और उसके चाचा क साथ चल्हे क पास बैठ गए, हमार काफी िेर से साथ
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होने और आज और कोई और यात्री न होने क कारण चाचा ने हमार दलए खास तौर पर दलगरे की सब्ज़ी
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और मडुआ (रागी) की रोटी बनाई, काफी िेर तक हम यहााँ क जानिरो, समस्याओ, मौसम, बुग्याल,
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जड़ीबटी, बफ़बारी, पहाड़ी जनजीिन पर बात करते करते सो गये |
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अगले दिन सुबह आगे जाते समय राहुल ने कहा लौटत समय खाना यह ीं खाना हम भी िािा करके आगे
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बढ़ गए, दपछले दिन की अपेिा आज रास्ता काफी सूिर है और चढाई भी कम है दफर भी हम धीरे ही चल
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रहे थ |रास्ता लगभग बुग्याल और पहाड़ी चोटी क साथ साथ जा रहा था, एक ओर से बािलो का धआाँ उठता
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और ि ू सरी ओर फ़ै ल जाता, िुलभ फू ल, जलधराय, बािलो और पदियों को िेखत िेखत दपत्रधारा और
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पचतररणी हमन पार कर दलया अब रुद्रनाथ मदिर की िदटया हमे सुनाई िेन लगी | काफी िेर मदिर पर
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दिश्राम करने क बाि हम िादपस मड़े | िापसी म हमें कु छ जगह मोनाल पिी भी दिख, सूरज से बिलो की
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अठखदलया चल रही थी, बफीली चोदटया धूप म चमक रही थी |
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हम प्रकृ दत क शानिार नज़ारे िेख ही रहे थ की पीछे पहाड़ से जो हलके सफ़े ि बािल आ रहे थ उनकी गदत
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अचानक काफी बढ़ गयी, और बािल पूरी तरह से दजस िाटी म हम बठे थ िही भर गए, बािलो का िनत्व
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इतना अदधक था की हम कु छ फु ट ि ू र तक भी नहीं िेख सकते थ | बाररश क बाि मौसम दफर साफ़ हो
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गया, और हम पनार की तरफ बढ़ चले, हम शाम 2 बजे~ राहुल क पास पनार बुग्याल उसकी छानी पर पहुंच
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गए |
आज राहुल की छािनी म बहुत भीड़ है~ िो सलादनयों को खाना बनाकर स्खला रहा हैं । उसकी व्यस्तथा
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और दबगड़ते मौसम को िेख कर हमन उसेसे दििा लेना का फसला दलया ।
हम नीच उतर आये, और इस तरह हमारा प्रकृ दत क बीच 42 दकलोमीटर का यािगार सफर का समापन
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हुआ |
E-ZINE | XIII EDITION