Page 38 - Ezine September - 13
P. 38

मेरी रुद्रनाथ यात्रा
                                                                                                                                जुलाई का उमस भरा एक और दिन~और बार बार फे ल होती मौसम दिभाग की भदिष्यिाणी~ मन की
                                                                                                                                आंख रोज़ आते जाते बािलो पर लगी रहती ।
                                                                                                                                    े

                                                                                                                                         ै
                                                                                                                                                                                                                   ं
                                                                                                                                समाचार चनलों पर बाररश की फे ल होती भदिष्यिाणी की खबर चल रही थी~ अचानक फ़ोन दिदिनाया
                                                                                                                                                                                                            ें
                                                                                                                                और फ़ोन क ि ू सरी तरफ मरे दमत्र की भी मनोस्थथदत मेरी जैसी ही थी । बातो बातो म श्री रुद्रनाथ जी
                                                                                                                                           े
                                                                                                                                                         े
                                                                                                                                ‡पंच किारˆ जाने का दिचार पक्का हुआ ।
                                                                                                                                     े

                                                                                                                                अगली सुबह चार बजे हम यमुना पुल पार कर रहे थ~ हिा म शीतलता और "ये रातें ये मौसम निी का
                                                                                                                                                                                      ें
                                                                                                                                                                               े
                                                                                                                                                                                               े
                                                                                                                                                                      ं
                                                                                                                                                       े
                                                                                                                                दकनारा ये ठं डी हिा " सुनत हुए हम उत्तराखड की तरफ तेजी से बढ़ रहे थ ।

                                                                                                                                ऋदिके श क जाम से हम अनजान नहीं थ,इसदलए हमन कोटद्वार - िुगड्डा,पौडी मागग को चना, बाररश पहाड़
                                                                                                                                                                               े
                                                                                                                                         े
                                                                                                                                                                                                           ु
                                                                                                                                                                  े
                                                                                                                                म िस्तक ि चकी थी , सारे पहाड़, पेड़~ पोधे साफ़ सथरे नहाये से लग रहे थ |
                                                                                                                                         े
                                                                                                                                                                            ु
                                                                                                                                            ु
                                                                                                                                 ें
                                                                                                                                                                                               े

                                                                                                                                पहाड़ी रास्तों~ निी, झरनों का आनंि लेत हुए हम गोपश्वर की तरफ बढ़ रहे थ, दपछली रात आई भारी बाररश
                                                                                                                                                                                                े
                                                                                                                                                                             े
                                                                                                                                                                  े
                                                                                                                                क कारण रास्ते म जगह जगह स्लाइदडंग और सड़क पर पड़े पत्थर दमल 
                                                                                                                                               ें
                                                                                                                                 े

                                                                                                                                मन म बार बार यही ख्याल आता रहा की कही हम गलत समय पर तो नहीं आ गए, दफर दकसी की कही
                                                                                                                                     ें
                                                                                                                                                                         ं
                                                                                                                                                                 ें
                Ravikant Yadav                                                                                                  बात याि आ जाती की 'पहाड़ बाररश म सबसे सुिर लगते है, और खतरनाक भी'
               Sr. Associate, RLCC                                                                                              शाम  लगभग  पांच  बजे  हम  गोपश्वर  से  आगे  मंडल  गांि  पहुंच  चके   थ~  मंडल  और  सगर  गांि   से  ही
                                                                                                                                                             े
                                                                                                                                                                                              े
                                                                                                                                                                                          ु
       Delhi International Airport Limited
         Ravikant.Yadav@gmrgroup.in                                                                                             रुद्रनाथ  की यात्रा प्रारंभ होती है हमें अगले दिन लगभग ­­ दकलोमीटर की यात्रा करनी थी 

                                                                                                                                रुद्रनाथ जी पहुंचन क दलए हमें ¬°«« मीटर से ®±«« मीटर की ऊं चाई तक चढ़ाई करनी थी । थथादनय
                                                                                                                                                े
                                                                                                                                                  े
               मेरी रुद्रनाथ यात्रा                                                                                             लोगों से पता लगा की शुरू का 10 दकलोमीटर का रास्ता जयािा चढाई िाला है, बाि का रास्ता बुग्यालों म  ें
                                                                                                                                से जाता है |

               जुलाई का उमस भरा एक और दिन~और बार बार फे ल होती मौसम दिभाग की भदिष्यिाणी~ मन की
                                                                                                                                पहाड़ो क पीछे से लादलमा दिखाई िेन लगी थी, पदियों क कलरि क साथ साथ हिा म पहाड़ी कु त्तो की
                                                                                                                                                                                           े
                                                                                                                                                                                                           ें
                                                                                                                                                                 े
                                                                                                                                                                                  े
                                                                                                                                       े
               आंख रोज़ आते जाते बािलो पर लगी रहती ।
                    े
                                                                                                                                आिाज़े भी रह रह कर आ रही थी | लादलमा जल्द ही तेज़ धुप म बिल गई और सूयग िेि सामने पहाड़ी पर
                                                                                                                                                                                       ें

                                                                                                                                प्रकट हो चके  थ |
                                                                                                                                             े
                                                                                                                                         ु
                         ै
               समाचार चनलों पर बाररश की फे ल होती भदिष्यिाणी की खबर चल रही थी~ अचानक फ़ोन दिदिनाया
                                                                                                   ं

                          े
                                                                                           ें
                                        े
               और फ़ोन क ि ू सरी तरफ मरे दमत्र की भी मनोस्थथदत मेरी जैसी ही थी । बातो बातो म श्री रुद्रनाथ जी
                     े
               ‡पंच किारˆ जाने का दिचार पक्का हुआ ।

               अगली सुबह चार बजे हम यमुना पुल पार कर रहे थ~ हिा म शीतलता और "ये रातें ये मौसम निी का
                                                                     ें
                                                              े
               दकनारा ये ठं डी हिा " सुनत हुए हम उत्तराखड की तरफ तेजी से बढ़ रहे थ ।
                                                                              े
                                                     ं
                                       े

               ऋदिके श क जाम से हम अनजान नहीं थ,इसदलए हमन कोटद्वार - िुगड्डा,पौडी मागग को चना, बाररश पहाड़
                                                              े
                                                 े
                         े
                                                                                           ु
               म िस्तक ि चकी थी , सारे पहाड़, पेड़~ पोधे साफ़ सथरे नहाये से लग रहे थ |
                           ु
                         े
                                                                              े
                ें
                                                           ु

               पहाड़ी रास्तों~ निी, झरनों का आनंि लेत हुए हम गोपश्वर की तरफ बढ़ रहे थ, दपछली रात आई भारी बाररश
                                                 े
                                                                               े
                                                            े
                                                    E-ZINE | XIII EDITION
               क कारण रास्ते म जगह जगह स्लाइदडंग और सड़क पर पड़े पत्थर दमल 
                े
                              ें

               मन म बार बार यही ख्याल आता रहा की कही हम गलत समय पर तो नहीं आ गए, दफर दकसी की कही
                    ें
                                                ें
               बात याि आ जाती की 'पहाड़ बाररश म सबसे सुिर लगते है, और खतरनाक भी'
                                                        ं
               शाम  लगभग  पांच  बजे  हम  गोपश्वर  से  आगे  मंडल  गांि  पहुंच  चके   थ~  मंडल  और  सगर  गांि   से  ही
                                                                             े
                                            े
                                                                         ु
               रुद्रनाथ  की यात्रा प्रारंभ होती है हमें अगले दिन लगभग ­­ दकलोमीटर की यात्रा करनी थी 

               रुद्रनाथ जी पहुंचन क दलए हमें ¬°«« मीटर से ®±«« मीटर की ऊं चाई तक चढ़ाई करनी थी । थथादनय
                                 े
                               े
               लोगों से पता लगा की शुरू का 10 दकलोमीटर का रास्ता जयािा चढाई िाला है, बाि का रास्ता बुग्यालों म  ें
               से जाता है |

               पहाड़ो क पीछे से लादलमा दिखाई िेन लगी थी, पदियों क कलरि क साथ साथ हिा म पहाड़ी कु त्तो की
                       े
                                                                          े
                                                े
                                                                                          ें
                                                                 े
               आिाज़े भी रह रह कर आ रही थी | लादलमा जल्द ही तेज़ धुप म बिल गई और सूयग िेि सामने पहाड़ी पर
                                                                      ें
               प्रकट हो चके  थ |
                            े
                        ु
   33   34   35   36   37   38   39   40   41   42